26 2021

क्या STRR/NTRR तय करेगा शिक्षकों का भविष्य ?

    नई शिक्षा नीति 2020 आने के बाद शिक्षा जगत के मुक्ताकाश में एक नई इंद्रधनुषी आभा मंडल का उदय हुआ है। शिक्षा से सरोकार रखने वाला हर व्यक्ति अपने अंदर कुछ विशेष महसूस कर रहा है। यह विशेष उसे नवाचार के लिए बाध्य एवं प्रेरित कर रहा है। राज्य शिक्षक संसाधन कोष (STRR) और राष्ट्रीय शिक्षक संसाधन कोष (NTRR) के गठन का प्रस्ताव एवं प्रक्रिया इस सोच के प्रतिफलन हैं। शिक्षा में प्रयोग और सतत् अनुसंधान ही शिक्षा की दिशा तय करते हैं और नवाचार अनुसंधान एवं प्रयोग की दिशा।  STRR एवं NTRR इस दिशा में उल्लेखित कदम माने जा सकते हैं। नवाचार एवं अनुसंधानों को राज्य एवं राष्ट्रीय स्तर पर एक पहचान और दस्तावेजीकरण की प्रक्रिया को स्थान देने की बात सोची गई है। इसी आलोक में हर राज्य में शिक्षकों की प्रतिभा, उनके सीखने की प्रक्रिया एवं नवाचार को मान्यता देने एवं एक दूसरे के नवाचारों को जानने के लिए राष्ट्रीय एवं प्रदेश स्तर पर शिक्षक संसाधन कोष ;टीचर रिसोर्स रिपाजिटरीद्ध के गठन की प्रक्रिया शुरू है। प्रत्येक विषय के लिए नवाचार में योगदान देने वाले 15-20 शिक्षकों को जिला स्तर पर पहचान की गई एवं इनमें से राज्य स्तर पर चयनित चार-पांच शिक्षकों को राष्ट्रीय शिक्षक संसाधन कोष के लिए नामित किया जाएगा। निस्संदेह पूरे भारत के शिक्षको के लिए यह एक उत्साहवर्द्धक कार्यक्रम बन कर उभर रहा है। यूं तो कई शिक्षक पहले से भी निष्ठापूर्वक अपना कार्य सम्पादित कर ही रहे थे। पर उनके कार्यों की सराहना के लिए कोई राष्ट्रीय या प्रांतीय मंच नहीं था। टीचर्स ऑफ बिहार ऐसे ही शिक्षक रत्नों को निखारने और उनके सद्प्रयासों की सराहना और प्रदर्शन के लिए एक उपयोगी मंच साबित हुआ, जहां सिर्फ उनके कार्यों के प्रचार के साथ-साथ दस्तावेजीकरण भी स्वतः हो रहा है।STRR और NTRR ने इस दिशा में आगे बढ़कर शिक्षकों के उपरोक्त कार्यों को मान्यता देकर एक उत्साहजनक वातावरण का निर्माण किया है।

सर्वप्रथम STRR  में इतने अल्पकाल में अपनी संचित निधियों का इतने बेहतर तरीके से इस्तेमाल करने के लिए चयनित शिक्षकों को टीचर्स ऑफ बिहार परिवार की ओर से बधाई और शुभकामनाएँ। इतने कम समय में आपने अपने आपको तैयार ही नहीं किया बल्कि उसका प्रदर्शन भी हर स्तर पर किया। हम सभी की अपेक्षा है कि बिहार के शिक्षक राष्ट्रीय स्तर पर अपने राज्य का नाम रौशन करेंगे।

पर क्या STRR और NTRR की सूची में आने वाले शिक्षक ही नवाचारी के श्रेणी में हैं? क्या आप मानते हैं कि जिनका चयन इस वर्ष नहीं हुआ उनका चयन अगले वर्ष भी नहीं होगा ? जवाब आपकी आत्मा ने आपको दे ही दिया होगा। बिहार के ऐसे कई शिक्षक हैं जो नवाचारों की खान हैं कई  इससे भी आगे... कई शिक्षक तो पंचायत चुनाव में मशगूल होने के कारण इस प्रक्रिया का चाह कर भी हिस्सा नहीं बन सके तो कुछ ने इसके महत्व को कम आंका। कुछ टेक्नोलॉजी की वजह से पीछे हो गए, तो बहुतों को इस आयोजन की जानकारी ससमय नही मिल पाई और कुछ कम समय में अधिक कार्य का बोझ नहीं उठा सके।

पर कई ने तमाम रुकावटों के बावजूद प्रक्रिया का पालन करते हुए जिला स्तर पर बेहतर प्रदर्शन किया परंतु राज्य द्वारा निकाले गए सूची में जगह बनाने में कामयाब नहीं हो पाए। जिन साथियों का चयन नहीं हो पाया उन्हें निराश होने या किसी को दोष देने की आवश्यकता नहीं। उन्हें तो और बेहतर तैयार होने का मुकम्मल मौका मिला है। टीचर्स ऑफ बिहार ऐसे शिक्षकों को भविष्य में आशाजनक-दृष्टि से देख रहा है। उनकी क्षमता और कार्यभावना को अच्छे से पहचानने के कारण इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है  कि इस बार भले वे चूके हों पर अगली बार उनकी ही बारी है।

पर इन सकारात्मक कार्यों के साथ-साथ इस संभावना से इंकार भी नहीं किया जा सकता है कि शिक्षक संसाधन कोष आने के बाद निम्नलिखित दुष्परिणाम सामने आ सकते हैं जिसके लिए राज्य और देश को तैयार होना होगा-

1. शिक्षक अपने कार्यों और प्रयोगों को सार्वजनिक करने से बचेंगे।
2. सामूहिक कार्यभावना की जगह व्यक्तिगत कार्यभावना पनपने लगेगी।
3. “हम“ की जगह अब “मैं“ की भावना विकसित होगी।
4. जिन शिक्षकों का चयन नहीं होगा उनका तंत्र पर से विश्वास उठेगा या वे
निरुत्साही होंगे।
5. कुछ चयनित शिक्षक बाकियों के काम को आकेंगे।

पर बात चाहे जो कुछ भी हो इसSTRR/ NTRR ने बिहार सहित पूरे देश में निम्नलिखित प्रभाव डाला है-

1. शिक्षकों को अपने कार्यों को सार्वजनिक रूप से प्रदर्शन करने का अवसर
प्राप्त हुआ।
2 एक स्वस्थ प्रतियोगिता की शुरुआत हुई।
3. यह सीख मिली कि सिर्फ काम ही नहीं करना है बल्कि उसका
दस्तावेजीकरण भी करना है।
4. शिक्षकों की छुपी प्रतिभाएं सामने आईं।

तो केंद्र और राज्य स्तर पर क्या किया जा सकता है अथवा क्या किया जाना चाहिए ?

1. ऐसे कार्यक्रमों का आयोजन प्रखंड स्तर से आरंभ होकर जिला स्तर पर भी जाना चाहिए। अर्थात प्रखण्ड शिक्षक संसाधन कोष (BTRR) और जिला शिक्षक संसाधन कोष (DTRR) बनाए जाने की आवश्यकता है।
2. मैं से हम की भावना विकसित करते हुए वैसे शिक्षकों का भी चयन किया जाए जिन्होंने अपने विद्यालय के साथ-साथ अपने क्लस्टर, ब्लॉक, जिला और राज्य में शिक्षकों की प्रतिभा और उनके कार्यों को आगे बढ़ाने के लिए कार्य किया हो।
3. रिपोजिटरी बनाने का यह कार्य पूरे साल में सिर्फ एक बार न होकर समय-समय पर आयोजित होता रहे ताकि वैसे शिक्षक जिन्होंने परिस्थिति वश या किसी कारणवश इसमें भाग न लिया हो उन्हें भी भाग लेने का मौका मिले। शिक्षक संसाधन कोष निर्माण की समीक्षा लगातार होनी चाहिए। ताकि जो शिक्षक छूट जाएं उन्हें पुनः अवसर मिल सके।
4. वस्तुतः चयन की प्रक्रिया किसी मानक पर ही हुई है पर चयनित नहीं  होने वाले शिक्षकों को यह अवश्य बताया जाना चाहिए कि कहाँ कमी रह गई ताकि अगली बार वे पूरी ऊर्जा एवं नवाचारों के साथ शामिल हो सकें।
5. चयन नहीं हो पाने वाले शिक्षकों को भी डिस्ट्रिक्ट लेवल पर एक दिवसीय उन्मुखीकरण कार्यक्रम आयोजित कर भविष्य की तैयारी हेतु प्रोत्साहित किया जाए।
6. जिला स्तर और प्रखण्ड स्तर पर एक शैक्षिक कोषांग का गठन होना चाहिये जो प्रतिभावान शिक्षकों को जागरूक कर उन्हें प्रोत्साहित करें।
7. ब्लॉक और जिला स्तर पर भी शिक्षकों को पुरस्कृत किया जाना चाहिए। शामिल प्रतिभागियों को एक प्रशस्ति पत्र भी देकर उनका सम्मान कर उन्हें आगे कार्य करते रहने के लिए सजग रखा जा सकता है।
8. राज्य स्तर पर चयनित शिक्षकों के कार्यों के दस्तावेजीकरण प्रकाशित होना चाहिए।
9. इस बात पर बल दिया जाए कि जिस शिक्षक ने अपने नवाचार को सिर्फ स्वयं तक ही सीमित करके नहीं रखा बल्कि इसे अधिक से अधिक शिक्षकों तक फैलाया, उन पर ध्यान केंद्रित किया जाए अर्थात जिनके नवाचार सबसे अधिक सर्वग्राही रहे उनको प्राथमिकता दी जाए।

अगर ऐसा होता है तो आने वाले समय में बिहार के पास नवाचारी शिक्षकों की बहुत बड़ी फौज होगी जो अपने कार्यों से शिक्षकों के मान-सम्मान को आगे बढ़ाएगी। शिक्षा सर्वजन सुलभ हो और इसका लाभ सभी शिक्षकों में एक नए आयाम विकसित करने में मददगार हो इससे बेहतर बात और क्या हो सकती है?

टीम, ‘टीचर्स ऑफ बिहार’


 

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